Sunday, September 14, 2014

भाषा की परिभाषा


कोई आँसुओं से सुनाये गाथा, कोई खुशियों भरे स्वर है गाता!
और एक तुम- हाथ जोड़े बोल रहे हो, "भाषा यह हमको नहीं आता"!
जुड़ जायेंगे शब्द कहीं, तुम व्यक्त करने का प्रयास करो,
क्यों कोस रहे हो जगह-धर्म-जात को, भाषा बनेगी तुम बात करो!

देखो माँ गीत गुनगुना के, बच्चे को अपने सुला रही,
न समझे बोल वह नन्ही जान, पर माँ से उसको गिला नहीं!
भावना जानवर भी समझ लेते हैं, तुम तो इन्सान हो, नाज़ करो,
परिवार है यह भी तुम्हारा, भाषा बनेगी तुम बात करो!

जब आतंक छा जाता है, या व्याधि से शरीर बंध जाता है,
ख़ुशी आसमान छूं लेती है जब, या गरीबी से जीवन लद जाता है,
क्या बनती है बंधन भाषा तब? इस तथ्य पर विचार करो!
मिट जाने दो भेद सारे, भाषा बनेगी तुम बात करो!
ख़ुशी और दर्द का इज़हार करो... भाषा बनेगी तुम बात करो! :)







इन्सान ने भाषा बनायीं है.. पर भाषा इन्सान की पहचान नहीं हो सकती! आज १४ सितंबर, 'हिन्दी दिवस' है| हिन्दी सुंदर भाषा है, और मेरी सबसे प्रिय भाषा! हर भाषा सुन्दर है और शब्दों को तथा इन्सानों को जोड़ना ही किसी भी भाषा की असली परिभाषा है!