Wednesday, April 16, 2014

ईश्वर का पुनर्जन्म

विकट यह युग है, मन विश्वास करने से है डरता...
भूख-प्यास, हिम-धूप में की हुई, तपस्याओं का फल नहीं मिलता!
ना यज्ञ-पूर्ति से प्राप्ति होती, ना गंगा धोती पाप है,
ना चिरंजीव रहता अब कोई, ना राख करता श्राप है!
समस्त विश्व के ऋषि-मुनि, मिले करने एक गंभीर चर्चा...
आखिर कब दिखेंगे ईश्वर... क्या निरर्थक सारी पूजा-अर्चा?
क्यों यह हो रहा...मति सीमित लगने लगी...
ईश्वर के अस्तित्व के प्रति, जिज्ञासा मन में जगने लगी!

क्या प्रकोप यह उसी ईश्वर का? और अंधकार संपूर्ण जगत में...
या सदियों का अंधविश्वास, अथवा कपट मुनिलोक पे?
व्यर्थ गयी शिक्षा सारी, बोले मुनिवर निराशा से,
कितना कुछ करते रहे, बस इसी एक आशा से...
दर्शन, पुण्य, वरदान मिलेगा, और सुंदर, सफल जीवन भी,
कितने सारे किये अभिषेक.. जाप, याचना और नमन भी!
लगता है यह मृत्यु है... श्रद्धा और विश्वास की,
भक्ति तो अब निंदा है, झूठ है प्राप्ति स्वर्गवास की!

लेकिन सभा शांत न थी, 'किन्तु-परन्तु' उठने लगे,
विचार धाराएँ बनने लगीं, समूहों में सभासद जुटने लगे...
कुछ बोले अब सेवा से ही, ईश्वर का स्वरूप ज्ञात होगा,
कोई बोला अंतरिक्ष से ही, इस बात का जवाब प्राप्त होगा!
कोई बोला लानत है, आज तक हमको झुठलाया गया,
मान-भिक्षा-शिष्य पाने के लिए, अनजानी बातों से उलझाया गया!
कोई मंदिर तोड़ने कोई ज़मीन खोदने में मग्न हुआ,
मानव-मन की इस खोज के बीच, ईश्वर का पुनर्जन्म हुआ!




#WednesdayWordplay is a poem-series in which readers send me a topic, a line, a picture or simply anything, which I complete/ interpret my way and present my interpretations through poetry! The idea is to present a perspective that is different from the reader's through interactive poetry.


This week's #WednesdayWordplay theme 'existence of God' (and not knowing whether to have faith in God) was contributed by Mrs.Aruna (@Arunapk57). Mrs.Aruna is a mother of two and a brave lady fighting cancer...with a smile! Her tweets inspire me and I pray for a happy life and a healthy recovery for her! If you have ideas for my #WednesdayWordplay series, write in to me or leave a comment here, the next poem could be based on what You send! ;)